देहरादून। नेशविला रोड पर राहगीरों और व्यापारियों को खुले में शौच करने को मजबूर होना पड़ता था, जिसे देखते हुए मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण एमडीडीए ने वर्ष 2016 में नेशविला रोड़ पर कांग्रेस मुख्यालय के पास एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण कर दिया, मगर ये शौचालय राहगीरों और व्यापारियों के काम आ पाता, उससे पहले ही कांग्रेस पार्टी की नजर उस पर पड़ गई, फिर क्या था, बस एक दीवार का निर्माण हुआ और सार्वजनिक शौचालय कांग्रेस पार्टी का हो गया। आज भी सार्वजनिक शौचालय को कांग्रेस ने कब्जा कर इसे पूरी तरह से निजी बनाया हुआ है।
शौचालय जाने के लिए आम लोगों के लिए जो सड़क की तरफ से गेट बनाया गया था, उसे कांग्रेसियों ने बंद कर दिया है। इससे राहगीरों के साथ ही आस पास के व्यापारियों को शौच के लिए परेशान होना पड़ रहा है। देहरादून में पहले ही सार्वजनिक शौचालयों की कमी है। बाजारों और सार्वजनिक जगहों पर शौचालय न होने के कारण राहगीरों को परेशानी उठानी पड़ती है। कुछ बाजारों और मुख्य मार्गों पर सार्वजनिक शौचालय हैं भी तो वह बदहाल हैं। कहीं पानी नहीं तो कहीं साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं है। इसके कारण राहगीरों और व्यापारियों को खुले में शौच करने को मजबूर होना पड़ता है। वहीं नेशविला रोड पर एक शौचालय ऐसा भी हैं जो कहने को तो सार्वजनिक है लेकिन इस पर कांग्रेस ने कब्जा किया हुआ है। शौचालय निर्माण वर्ष 2016 में एमडीडीए ने किया था।
इसका उपयोग नेशविला रोड के व्यापारी और राहगीर किया करते थे, लेकिन वह भी इसका उपयोग ज्यादा समय तक नहीं कर पाए, क्यों की कांग्रेस पार्टी की नजर सार्वजनिक शौचालय पर आ चुकी थी और कांग्रेस पार्टी ने एक दीवार का निर्माण कराकर शौचालय पर कब्जा कर लिया। वर्तमान समय में इस पर कांग्रेस पार्टी का ही कब्जा है। नेशविला रोड की तरफ से शौचालय के लिए जो गेट बनाया गया था, उसे बंद कर दिया गया है। जिससे अब आम लोग और राहगीर इसका प्रयोग नहीं करते हैं।
शौचालय का प्रयोग केवल कांग्रेस के कार्यकर्ता करते हैं। हालांकि, कई बार इसकी शिकायत भी हुई लेकिन न तो एमडीडीए और न ही नगर निगम ने सार्वजनिक शौचालय से कांग्रेस पार्टी का कब्जा हटाने की कार्रवाई की। मामला मुख्य विपक्षी पार्टी से जुड़ा होने के कारण विभाग भी कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अब नगर निगम को नया बोर्ड डेढ़ वर्ष के विलम्ब से मिला है, देखते हैं नये जनप्रतिनिधि कांग्रेस पार्टी के द्वारा किए गए कब्जे को हटा पाते हैं या नहीं। कहीं ऐसा न हो पहले वालों की तरह नये मेयर भी मित्रता निभाते हुए अपना कार्यकाल पूरा न कर दे। आखिर उत्तराखंड में पिछले 24 वर्षों से जो भी विपक्ष में होता है वह सत्ता रूढ़ दल से मित्रता निभाते हुए मित्र विपक्ष बन जाता हैं, जिसके कारण सब चलने लगता है। फिर चाहे सार्वजनिक शौचालय पर कब्जा हो या फिर नगर निगम की करोड़ों रुपए की जमीन की बंदरबांट।