देहरादून। भागीरथी नदी के तट पर स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। स्कंद पुराण के अनुसार, जब पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा, तब शिव हिमालय में वास करेंगे, इसलिए इसे उत्तर की काशी भी कहा जाता है।मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान परशुराम ने की थी, और इसका स्वयंभू शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है।
एक मान्यता के अनुसार, ऋषि मार्कंडेय ने इसी मंदिर में शिव की घोर तपस्या की थी। जब यमराज उनके प्राण लेने आए, तो ऋषि शिवलिंग से लिपट गए। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरता का आशीर्वाद दिया, और तभी से शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ माना जाता है।
मंदिर परिसर में स्थित शक्ति मंदिर का 1500 वर्ष पुराना त्रिशूल तिब्बती व नाग वंशीय शिलालेखों से अलंकृत है, जो भारत-तिब्बत के सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाते हैं।
उत्तरकाशी का काशी विश्वनाथ मंदिर चारधाम यात्रा का एक अहम पड़ाव है। मान्यता है कि जब तक गंगोत्री यात्रा के साथ वाराणसी के काशी विश्वनाथ और रामेश्वरम में पूजा नहीं की जाती, तब तक यात्रा अधूरी मानी जाती है।