उत्तराखण्ड

शोध में दावा…नींद व इससे संबंधित समस्या बन रही उत्तराखंड में सड़क हादसों का बड़ा कारण

शोध में दावा…नींद व इससे संबंधित समस्या बन रही उत्तराखंड में सड़क हादसों का बड़ा कारण

एम्स के मनोरोग विभाग के चिकित्सकों के एक शोध ने स्पष्ट किया है कि नींद व नींद से संबंधित समस्या उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा बन रहा है।

नींद व नींद से संबंधित बीमारी उत्तराखंड में सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण बन रही है। नींद से संबंधित समस्या से लंबी दूरी के बड़े वाहन ही नहीं बल्कि शहर के आंतरिक मार्गों पर रोजमर्रा के सफर में छोटे वाहन भी दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। एम्स के मनोरोग विभाग के निंद्रा प्रभाग के चिकित्सकों के शोध में इस बात की पुष्टि हुई है।

शोध अमेरिका के क्यूरियस मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। अक्सर उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण नशे को माना जाता है, इस लिए प्रशासन नशे के खिलाफ समय-समय पर अभियान चलाता है। अभियान के तहत एल्कोमीटर से वाहन चालकों की जांच भी की जाती है। लेकिन एम्स के मनोरोग विभाग के चिकित्सकों के एक शोध ने स्पष्ट किया है कि नींद व नींद से संबंधित समस्या उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा बन रहा है।

चिकित्सकों ने अक्तूबर 2021 से अप्रैल 2022 तक करीब 1200 लोगों पर शोध किया। ये सभी लोग विभिन्न क्षेत्रों में वाहन दुर्घटना में घायल हुए थे, जो उपचार के लिए एम्स में भर्ती थे। इनमें से 575 घायल वाहन चालक थे। इन वाहन चालकों में 75 फीसदी संख्या दोपहिया व तिपहिया वाहन चालकों की थी। शोध निर्देशक प्रो. रविगुप्ता व डॉ. विशाल धीमान ने बताया कि 21 फीसदी दुर्घटनाएं वाहन चलाते समय नींद आना या नींद से संबंधित समस्या के चलते हुई।

वहीं अत्यधिक काम के चलते थकान से आने वाली नींद भी 26 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण बनी। 32 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण नशा था, लेकिन इनमें अधिकांश वो चालक भी शामिल थे जो नींद व नींद से संबंधित समस्या से भी ग्रसित थे और नशा करने से उनकी यह समस्या और अधिक बढ़ गई और दुर्घटना का कारण बनी। शोध में स्पष्ट हुआ कि नींद की समस्या के चलते होने वाली करीब 68 फीसदी दुर्घटनाएं सीधी सपाट व रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली सड़कों पर हुई हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं शाम छह बजे से रात 12 बजे के बीच हुई हैं। क्योंकि कुछ लोग शाम को शराब का सेवन भी कर लेते हैं और ऐसे में नींद से संबंधित समस्या और अधिक बढ़ जाती है।

सुझाव

मनोरोग विभाग के प्रो. रवि गुप्ता व डॉ. धीमान कहते हैं कि ड्राइविंग लाइसेंस जारी किए जाने की प्रक्रिया में नींद की बीमारी से संबंधित जांच को भी प्रमुख मानकों में रखा जाना चाहिए। लाइसेंस प्रक्रिया के दौरान स्वास्थ्य जांच में नींद के स्वास्थ्य को भी शामिल किया जाए तो बेहतर होगा। साथ ही नियमित समय पर वाहन चालकों की नींद की बीमारी संबंधित जांचे की जानी चाहिए। प्रो. गुप्ता कहते हैं कि वाहन में एक ऐसा उपकरण (सेंसर) होना चाहिए जो ड्राइवर को नींद की समस्या होने पर अलर्ट करे। प्रो. गुप्ता कहते हैं कि ज्यादातर चालकों को पता होता है कि उन्हें नींद आ रही है, फिर भी वे वाहन चलाते रहते हैं। उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि वे उस समय रुकें, झपकी लें और फिर तरोताजा महसूस होने पर वाहन चलाएं। व्यावसायिक वाहनों के मालिकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके कर्मचारी (ड्राइवर) पर्याप्त नींद ले रहे हैं और उन्हें कोई नींद संबंधी विकार नहीं है।

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