उत्तराखण्ड

फर्जी शादी का खेल! दून में ऊलजलूल आयोजन की सनक पर पुलिस ने लगाई रोक

देहरादून:

दून का सुकून अभी कायम है। यहां दिल्ली और मुंबई जैसी इतनी आपाधापी भी नहीं है कि शादी जैसे समारोह में शरीक होने और उसका एहसास करने के लिए फर्जी शादी का सहारा लिया जाए। फिर कुछ रस्में ऐसी होती हैं, जिनकी जगह आभासी दुनिया कतई नहीं ले सकती। हम जिंदा हैं, हमारे भीतर भावनाएं हैं और उनसे जुड़ी जो परंपरा है। उसका हिस्सा बनने के लिए किसी फर्जी आयोजन की जरा भी जरूरत नहीं है। फिर शादी जैसे समारोह का फर्जी रस्म का आयोजन कर उसमें शिरकत कराने की मंशा का मतलब क्या है? यह मनोरंजन है या मनोविकार? इस पर बहस जारी रहेगी। फिलहाल, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह के निर्देश पर मॉल ऑफ देहरादून में 06 सितंबर 2025 को तय फर्जी शादी के कार्यक्रम को रोक दिया गया है।

पुलिस ने यह कदम कुछ सामाजिक और धार्मिक संगठनों के तीखे विरोध के चलते उठाया है। आयोजकों को चेतावनी दी गई है कि ऐसा कोई आयोजन न किया जाए, जिससे धार्मिक और सामजिक भावनाएं आहत हों। साथ ही सभी कार्यक्रमों में कानून-व्यवस्था और जन सुरक्षा का विशेष ध्यान रखने को भी कहा गया है। पुलिस जो कर सकती थी, वह कर लिया गया है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि मेट्रो शहरों के मनोरंजन के असामान्य तौर-तरीकों की क्या देहरादून को भी जरूरत है?

फिलहाल, देहरादून के सामाजिक तानेबाने को देखते हुए ऐसी कोई जरूरत महसूस नहीं होती है। खासकर फर्जी शादी (फेक मैरिज) जैसे कार्यक्रमों की तो किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। हम उस दौर से उतना दूर भी नहीं गए जहां बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होना भी एक तरह अलग अहसास जुड़ाव कराता था। तो इस तरह के फर्जी शादी के आयोजन को मनोरंजन की जगह मनोविकार और भावनात्मक जुड़ाव की जगह परंपरा का सौदा माना जा सकता है।

जिस तरह बाजार हमारी अवश्यकताओं की पूर्ति के साथ हमारी जरूरत भी पैदा करता है, उसी तरह फर्जी शादी के आयोजन की सनक यह बाजार दून पर सवार कराने पर तुला है। बहुत संभव है कि भविष्य में यही आयोजक पूरी तैयारी के साथ फिर सामने आएं और फर्जी शादी के धूम-धड़ाके में हमारी भावनाओं का बैंड बजाकर चले जाएं।

चूंकि, इस तरह के आयोजनों और आयोजकों को हमारी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं होता है। बस वह तो उनका सौदा कर अपना बाजार बड़ा करते हैं। ऐसे में देहरादून की जनता यह सवाल तो पूछ ही सकती है कि फर्जी शादी का क्या मतलब? आज बेशक इस आयोजन में बिना दूल्हा-दुल्हन के वेडिंग सेरेमनी आयोजित की जाएगी। कल फर्जी दूल्हा-दुल्हन भी होंगे और जब आप इस फर्जी शादी के बाजार की पूरी तरह गिरफ्त में होंगे, तब न जाने किन-किन परंपरा और भावनाओं का बाजार फर्जी शादी में सजा दिया जाएगा।

यह चिंता बेशक अभी मनोरंजन के मनोविकार से अछूते देहरादून की है, लेकिन हमारा मानना है कि यह चिंता देश के मेट्रो शहरों की भी होनी चाहिए। बेशक दिन-रात दौड़ने वाले ऐसे शहरों में मनोरंजन की खुराक के कई मायने होंगे। वहां तमाम लोग परिवार और समाज की बंदिशों से आगे बढ़ गए होंगे। लेकिन, उन्हें भी सुकून के पल और अपनों का कांधा तलाशने के लिए असल रिश्तों में ही उतरना पड़ता होगा। यदि नहीं, तो आपको मुबारक है फर्जी शादी और उसके फर्जी एहसास का आनंद।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *