देहरादून।
उत्तराखंड परिवहन विभाग राज्य में सड़क किनारे मोटर वर्कशॉप चलाने वाले मैकेनिकों के लिए लाइसेंस, तकनीकी प्रशिक्षण और न्यूनतम मानक अनिवार्य करने की नई नीति तैयार कर रहा है। विभाग का कहना है कि आधुनिक, कंप्यूटराइज्ड वाहनों के दौर में अनट्रेंड मैकेनिकों द्वारा की गई गलत मरम्मत सड़क हादसों का कारण बन सकती है, इसलिए व्यवस्था में सुधार जरूरी है।
देहरादून के क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) संदीप सैनी ने बताया कि मसौदा नीति को उत्तराखंड मोटर यान नियमों में शामिल करने की तैयारी चल रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में बड़ी संख्या में मोटर वर्कशॉप बिना किसी अधिकृत मानक, प्रशिक्षण या प्रमाणपत्र के संचालित हो रही हैं, जो सड़क सुरक्षा के लिहाज से चिंता का विषय है।
सैनी के अनुसार, “सड़क किनारे चलने वाली ज़्यादातर वर्कशॉप बिना किसी मंजूरी के चल रही हैं। कई मैकेनिक बिना कौशल विकास के सिर्फ स्थानीय जानकारी पर काम कर रहे हैं, जबकि आज की गाड़ियां पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड सिस्टम पर आधारित हैं। गलत मरम्मत सड़क हादसों का कारण बन सकती है।”
उन्होंने बताया कि नई नीति में कौशल विकास पाठ्यक्रम अनिवार्य करने पर भी विचार किया जा रहा है।
नीति का विरोध शुरू—‘रोज़गार पर संकट’ की आशंका
प्रस्तावित नीति को लेकर राज्यभर में विरोध भी शुरू हो गया है। मैकेनिकों का कहना है कि यदि लाइसेंस और प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया तो उनकी रोज़ी-रोटी पर संकट पैदा हो जाएगा।
एक स्थानीय मैकेनिक कमर ने नाराजगी जताते हुए कहा,
“सरकार की सोच गरीबी हटाने की नहीं, गरीब हटाने की लगती है। पढ़े-लिखे लोग बेरोज़गार घूम रहे हैं और जो अशिक्षित लोग अपने हुनर से काम कर रहे हैं, उनके रोजगार खत्म करने की तैयारी हो रही है।”
पचास वर्षीय मैकेनिक इरफ़ान अहमद ने पूछा कि वह पिछले 20-25 सालों से यह काम कर रहे हैं, अब वे डिप्लोमा कहां से लाएं।
वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने नीति का किया समर्थन
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने इस नीति को उचित और समय की जरूरत बताया।
उन्होंने कहा, “लाइसेंस होने से मैकेनिक बेहतर ढंग से काम कर पाएंगे और आधुनिक तकनीक से जुड़े रहेंगे। यह नीति किसी पर हमला नहीं, बल्कि समाज को सक्षम बनाने की दिशा में कदम है।”
शम्स ने कहा कि मुस्लिम समाज के कई लोग पारंपरिक रूप से इस पेशे से जुड़े हैं, परंतु बदली तकनीक के साथ शिक्षा और प्रशिक्षण अब अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा, “सिर्फ अनुभव काफी नहीं है। नई गाड़ियां इलेक्ट्रिक और चिप आधारित तकनीक पर चलती हैं। तकनीकी ज्ञान के बिना काम संभव नहीं है।”
उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो इस नीति को “नफरत फैलाने” का मुद्दा बता रहे हैं।
“मुस्लिम बच्चे मैकेनिकल इंजीनियर क्यों नहीं बन सकते? उन्हें पढ़ने से किसने रोका? लाइसेंस और प्रशिक्षण उन्हें आगे ले जाएगा,” शम्स ने कहा।
कांग्रेस नेता हरीश रावत ने बताया ‘गरीब विरोधी’
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रस्तावित नीति को गरीब विरोधी बताते हुए सरकार पर हमला बोला।
उन्होंने आरोप लगाया, “लाइसेंस की बाध्यता भ्रष्टाचार बढ़ाएगी और आम लोगों को परेशान करेगी। आज 100–200 रुपए में होने वाली मरम्मत हजारों में पड़ेगी।”
रावत ने दावा किया कि सरकार बड़ी वर्कशॉपों को लाभ पहुंचाने के लिए सड़क किनारे छोटी दुकानों पर कठोर नीति लागू कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि यह नीति उन समुदायों को निशाना बनाएगी जो बड़ी संख्या में इस पेशे से जुड़े हुए हैं।
परिवहन विभाग बोले—मसौदा है, सभी से सुझाव लिए जाएंगे
विभागीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि अभी नीति मसौदा रूप में है, और अंतिम निर्णय से पहले सभी हितधारकों के सुझाव लिए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि उद्देश्य किसी के रोजगार पर चोट करना नहीं, बल्कि सड़क सुरक्षा और तकनीकी मानकों में सुधार लाना है।