- मतदान केंद्र पर सुरक्षा का नियम 500 मीटर, आयोग ने बताया 100 मीटर – कोर्ट ने जताई नाराज़गी
- पाँच सदस्य बिना अनुमति मतदान से अनुपस्थित – अब तक नहीं हुई कार्रवाई
- “एसएसपी फेल, डीएम पंचतंत्र की स्टोरी भेज रही थीं” – मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी
नैनीताल,
जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव मामले में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से कई गंभीर सवाल पूछे। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने आयोग से साफ पूछा कि उन पांच सदस्यों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिन्होंने बिना अनुमति अपना मत नहीं डाला। अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह सोमवार, 1 सितंबर तक शपथपत्र दाखिल कर इस संबंध में अपना पक्ष स्पष्ट करे।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि आयोग की रिपोर्टों में मतदाताओं के अपहरण और चुनाव दिवस पर हुई घटनाओं का कोई उल्लेख नहीं है। खंडपीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि मतदान केंद्र से मात्र 100 मीटर तक सुरक्षा का हवाला देना नियमों के विपरीत है, जबकि निर्वाचन नियमावली के अनुसार आधा किलोमीटर तक भीड़ और अव्यवस्था प्रतिबंधित होनी चाहिए।
अदालत ने यह भी पूछा कि डीएम और एसएसपी की भूमिका पर अब तक क्या कार्रवाई की गई है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “एसएसपी तो फेल हो गए और डीएम पंचतंत्र की स्टोरी भेज रही थीं।” साथ ही सवाल उठाया कि यदि पांच सदस्य बिना अनुमति मतदान से अनुपस्थित रहे तो उनके खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
चुनाव आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट ने अदालत को बताया कि आब्जर्वर ने दो रिपोर्ट दी हैं, जिनमें कहा गया है कि 100 मीटर के दायरे में कोई गड़बड़ी या हिंसा नहीं हुई। रिपोर्ट डीजीपी, जिलाधिकारी और एसएसपी को भेजी गई थी। उन्होंने कहा कि अगर आयोग को अधिकार मिलेगा तो पांच अनुपस्थित सदस्यों के खिलाफ निश्चित रूप से कार्यवाही की जाएगी, हालांकि अभी तक उन्हें नोटिस भेजने का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
याची पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र पाटनी ने तर्क रखा कि नियम के मुताबिक मतदान केंद्र से एक किलोमीटर तक नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए था। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि मतदान के दिन अपहरण के आरोप में 5 से 6 एफआईआर दर्ज हुईं, लेकिन चुनाव आयोग ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की।
इसी बीच नव निर्वाचित अध्यक्ष दीपा दरमवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद वशिष्ठ ने कहा कि विपक्ष के पास 15 सदस्यों के प्रमाणपत्र हैं, जिनसे साबित होता है कि वे उनके साथ मौजूद थे। उन्होंने अदालत को घटनाक्रम की ट्रांसलेटेड कॉपी पढ़कर सुनाई और कहा कि 5000 मीटर का पूरा क्षेत्र खाली था तथा 100 मीटर के भीतर क्षेत्र को सैनिटाइज किया गया था।
डीईओ/डीएम वंदना सिंह भी सुनवाई के दौरान वर्चुअली उपस्थित हुईं। वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ने तर्क दिया कि चुनाव तय होते ही सारे अधिकार चुनाव आयोग के पास चले जाते हैं, ऐसे में रिपोर्ट होने के बावजूद कोई कार्रवाई न होना गंभीर है। अंत में खंडपीठ ने साफ कहा कि उनकी चिंता इस बात की है कि चुनाव आयोग आखिर कर क्या रहा है। यदि मतदान दिवस पर अपराध हुए तो आयोग ने अधिकारियों को क्या निर्देश दिए और कौन-सा एक्शन लिया, यह स्पष्ट किया जाए। अदालत ने टिप्पणी की कि अब तक आयोग की किसी रिपोर्ट में अपहरण या अपराध का उल्लेख नहीं है।