उत्तराखण्ड

एक साल से अटकी दाखिल-खारिज की फाइल 3 दिन में निपटी, डीएम सविन बंसल की त्वरित कार्रवाई से समाधान

देहरादून।

सरकारी दफ्तरों की लेटलतीफी, पेंडिंग फाइलें और आम लोगों की हताशा की कहानियां आम हैं, लेकिन जब एक जिम्मेदार अफसर संज्ञान लेकर त्वरित कार्रवाई करता है, तो न सिर्फ समस्या सुलझती है, बल्कि व्यवस्था पर जनता का भरोसा भी और मजबूत होता है। ऐसा ही एक मामला ओगल भट्टा की किरण देवी का सामने आया है, जिनकी एक साल से अटकी जमीन की दाखिल-खारिज की प्रक्रिया सिर्फ तीन दिन में पूरी हो गई—वह भी जिलाधिकारी सविन बंसल के हस्तक्षेप से।

महीनों से दौड़ रही थीं, हर जगह से मिली निराशा

किरण देवी के पति अर्द्धसैनिक बल में कार्यरत हैं। उन्होंने जून 2024 में शीशमबाड़ा क्षेत्र में 0.00082 हेक्टेयर भूमि खरीदी थी। लेकिन एक साल बाद भी उस जमीन का दाखिल खारिज नहीं हुआ। किरण देवी का आरोप था कि वकील और अन्य संबंधित लोग उन्हें लगातार गुमराह कर रहे थे और किसी कार्यालय से उन्हें स्पष्ट जानकारी नहीं मिल रही थी।

जब कोई उम्मीद नहीं बची, तब डीएम से लगाई गुहार

1 अगस्त 2025 को किरण देवी आखिरकार जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचीं और अपनी पूरी आपबीती डीएम सविन बंसल को बताई। उनकी बात सुनते ही जिलाधिकारी ने तहसीलदार विकासनगर को तत्काल रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। डीएम के सीधे संज्ञान में आते ही मामला तेजी से आगे बढ़ा, और तीन दिन के भीतर दाखिल खारिज के आदेश जारी कर दिए गए।

डीएम की त्वरित कार्रवाई, जनता में बढ़ा विश्वास

किरण देवी ने बताया कि वह कई महीनों से परेशान होकर विभागों के चक्कर काट रही थीं, लेकिन समाधान नहीं मिल रहा था। उनके मुताबिक, “जिलाधिकारी ही आखिरी उम्मीद थे, जिन्होंने निराश नहीं किया।” अब शीशमबाड़ा की भूमि उनके नाम दर्ज हो गई है।

प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल

इस मामले ने एक बार फिर सरकारी मशीनरी में मौजूद लापरवाही और गैर-जवाबदेही को उजागर कर दिया है। अगर डीएम के पास शिकायत न पहुंचती, तो शायद आज भी किरण देवी फाइलों के ढेर में गुम एक नाम बनी रहतीं। यह सवाल भी खड़ा होता है कि आखिर तहसील और रजिस्ट्री विभाग जैसे अहम दफ्तर इतने लापरवाह क्यों हैं, जहां आम नागरिकों को सालभर तक परेशान होना पड़ता है?

सराहना और सबक

जिलाधिकारी सविन बंसल की त्वरित कार्रवाई की व्यापक सराहना हो रही है। यह मामला अन्य अधिकारियों के लिए एक उदाहरण और चेतावनी दोनों है—कि जनता की समस्याओं को टालना अब सहन नहीं किया जाएगा, और जब जिम्मेदार अफसर हरकत में आते हैं, तो व्यवस्था बदल सकती है।

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