उत्तराखण्ड

रुद्रप्रयाग में वन्यजीव आतंक: गुलदार के बाद भालू का खौफ, बढ़ता मौत का आंकड़ा

रुद्रप्रयाग:

वर्ष 2025 में रुद्रप्रयाग जिले के भीतर गुलदार के हमलों में 4 लोगों की मौत हुई है. जबकि 12 लोगों को गुलदार ने घायल किया है. इसी तरह इस वर्ष अभी तक भालू के हमले में 14 लोग घायल हो चुके हैं. वर्ष 2022 से अभी तक के आंकड़ों पर गौर करें तो जंगली जानवरों के हमलों में सबसे अधिक लोगों की मौत और घायल जिले में इसी वर्ष 2025 हुए हैं. इन दिनों भी अलग-अलग क्षेत्रों में गुलदार और भालू का आतंक बना हुआ है.

दरअसल, गुलदार और भालू की धमक से इन दिनों जिले वासी काफी परेशान हैं. आए दिन गुलदार और भालू के हमले में लोग घायल हो रहे हैं. इन दिनों तो भालू का भयावह आतंक है. भालू इंसानों के साथ ही मवेशियों को निशाना बना रहे हैं. पिछले चार सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2022 में गुलदार ने पांच लोगों को मौत के घाट उतारा था और 6 लोगों को घायल किया था. इसी तरह भालू के हमले में एक की मौत और चार घायल हुए थे. साल 2023 में गुलदार के हमले में एक की मौत और दो लोग घायल हुए थे. जबकि भालू के हमले में 8 लोग घायल हुए थे. वर्ष 2024 की बात करें तो गुलदार के हमले में 11 लोग घायल हुए थे. इस वर्ष भालू के हमले में दो लोगों की मौत और तीन लोग घायल हुए थे.

वहीं साल 2025 में अभी तक गुलदार के हमलों में चार लोगों की मौत और 12 लोग घायल हो चुके हैं. भालू इस वर्ष अभी तक अलग-अलग क्षेत्रों में 14 लोगों को घायल कर चुका है. इस वर्ष बंदर भी बीस लोगों को घायल कर चुके हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो इस वर्ष जंगली जानवरों के हमलों में अधिक लोगों की मौत और घायल हुए हैं. जबकि इन दिनों भी जगह-जगह गुलदार और भालू का आतंक बना हुआ है. ग्रामीण जनता भयभीत है. भालू और गुलदार के हमलों से ग्रामीणों की पूरी दिनचर्या इन दिनों खराब चल रही है.

खुले में कचरा मिलने पर जंगली जानवर हो रहे आकर्षित: रुद्रप्रयाग जिले में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष, विशेषकर भालू संबंधित घटनाओं के मद्देनजर प्रभागीय वन अधिकारी रजत सुमन की अध्यक्षता में आपात बैठक आयोजित की गई. इस दौरान सभी रेन्जों से क्षेत्रवार विवरण प्राप्त कर ग्राम-वार आकलन किया गया. जिसमें जुलाई से अब तक 128 गांव संवेदनशील पाए गए हैं.

डीएफओ रजत सुमन ने बताया कि वन विभाग की ओर से अक्टूबर से अब तक लगभग 350 गांवों और विद्यालयों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं. जागरूकता कार्यक्रमों को मजबूत करने को लेकर घर-घर संपर्क और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के माध्यम से सतत जागरूकता प्रसार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि वन क्षेत्रों में कम फल, भोजन की कमी, कचरे का आकर्षण और जलवायु असामान्यताओं के कारण भालुओं के व्यवहार में परिवर्तन देखा जा रहा है.

संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों के निरीक्षण के दौरान देखा गया कि जहां खुले में जैविक कचरा फेंका गया है, उन क्षेत्रों में घटनाएं सामने आ रही हैं. उन्होंने सभी रेन्जों को खुले में कचरा डालकर वन्यजीवों को आकर्षित करने वाले लोगों के विरुद्ध वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत कार्रवाई करने के निर्देश दिए. अत्यधिक संवेदनशील गांवों में फॉक्स लाइट्स के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ ही अधिक उपकरणों और अतिरिक्त कार्यबल की व्यवस्था कर जमीनी स्तर पर प्रतिक्रिया क्षमता को सुदृढ़ करने के लिए कहा गया है.

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