सरे (वैंकूवर), कनाडा / सिएटल, अमेरिका – 29 अक्टूबर 2025
मुख्यमंत्री जी ने अपने संदेश में कहा —
“जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति जीवित है। उत्तराखंड सरकार सदैव अपनी मातृभाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए तत्पर है और इस ऐतिहासिक पहल में पूर्ण सहयोग करेगी।”
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी (वीडियो संदेश), पद्मश्री प्रीतम भारतवाण (लोकगायक, जागर एवं ढोल सागर अकादमी), सचिदानंद सेमवाल (AI आर्किटेक्ट, अमेरिका), अमित कुमार, सोसाइटी के अध्यक्ष श्री बिशन खंडूरी, टोरंटो से श्री मुरारीलाल थपलियाल, एवं भारत दूतावास के प्रतिनिधिगण।
पद्मश्री प्रीतम भारतवाण जी ने कर्णप्रयाग (बद्रीनाथ क्षेत्र) से ऑनलाइन जुड़कर अपने संदेश में कहा —
“जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान जीवित है। भाषा बचेगी तो संस्कार भी बचेंगे।”
सचिदानंद सेमवाल (AI आर्किटेक्ट, अमेरिका) ने कहा —
“यह केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ने और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रखने का एक जन-आंदोलन है।
Devbhoomi Uttarakhand Cultural Society Canada के अध्यक्ष श्री बिशन खंडूरी जी ने कहा —
“यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि इस ऐतिहासिक लॉन्च की मेजबानी का अवसर हमारी संस्था को मिला। यह पहल विदेशों में रह रहे सभी उत्तराखंडियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखेगा।”
कार्यक्रम के दौरान सोसाइटी ने यह भी घोषणा की कि —
कनाडा और अमेरिका में “AI सक्षम भाषा शिक्षण केंद्र” (AI-enabled Learning Centers) स्थापित किए जाएँगे, जहाँ प्रवासी बच्चे आधुनिक तकनीक की सहायता से गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाएँ सीख सकेंगे। ये केंद्र पद्मश्री प्रीतम भारतवाण जी की जागर अकादमी से संबद्ध रहेंगे।
इस अवसर पर सोसाइटी के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे —
श्री शिव सिंह ठाकुर (उपाध्यक्ष), श्री विपिन कुकरेती (महामंत्री), श्री उमेद कठैत, श्री जगदीश सेमवाल, श्री गिरीश रतूड़ी, श्री रमेश नेगी, श्री जीत राम रतूड़ी, श्री विनोद रौंतेला, तथा Devbhoomi Uttarakhand Cultural Society Canada के सभी सदस्यगण।
मस्तू दास जी, शक्ति प्रसाद भट्ट जी, के. एस. चौहान जी, तथा प्रोजेक्ट की कोर टीम, जिन्होंने इस ऐतिहासिक पहल को दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कनाडा के स्थानीय मीडिया, भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि, AI विशेषज्ञों, सांस्कृतिक संगठनों और बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।
जय उत्तराखंड, जय भारत।
