ढाई दशक में 15 गुना बढ़ी शराब से आय
उत्तराखंड में आबकारी राजस्व 231 करोड़ से 4 हजार करोड़ पार, बनी सरकार की बड़ी आमदनी का जरिया
बीते दस सालों में दोगुनी हुई शराब बिक्री, नई आबकारी नीति और पर्यटन वृद्धि से राज्य में बढ़ी खपत — सामाजिक संगठनों ने जताई चिंता
देहरादून :
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अब तक शराब की बिक्री और खपत में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। आबकारी विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 में जहां शराब से कुल राजस्व ₹231 करोड़ था, वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह बढ़कर ₹4,038 करोड़ पहुंच गया। यानी ढाई दशक में शराब की खपत में करीब 15 गुना की बढ़ोतरी हुई है।
साल-दर-साल बढ़ता आंकड़ा:
राज्य के गठन के शुरुआती वर्षों में शराब बिक्री सीमित थी, लेकिन 2010 के बाद इसमें निरंतर उछाल देखने को मिला। 2014-15 में जहां आबकारी राजस्व ₹2,012 करोड़ था, वहीं 2019-20 तक यह ₹3,048 करोड़ पहुंच गया। कोविड काल के बाद 2022-23 में थोड़ी गिरावट आई, लेकिन 2023-24 में बिक्री फिर से तेजी से बढ़ी और अब 2024-25 में ₹4,038 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। विभाग ने आगामी वर्ष 2025-26 के लिए ₹5,060 करोड़ का लक्ष्य रखा है।
राजस्व के बड़े स्तंभ के रूप में उभरा शराब व्यापार:
आबकारी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि शराब अब राज्य की Own Revenue (स्वयं की आय) का प्रमुख स्रोत बन चुकी है। नई आबकारी नीति के तहत लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल किया गया है और निजी व बॉटलिंग यूनिट्स को प्रोत्साहन दिया गया है। साथ ही, राज्य में पर्यटक स्थलों पर देशी-विदेशी ब्रांडों की उपलब्धता और बार-रेस्टोरेंट की बढ़ती संख्या ने भी बिक्री को बढ़ावा दिया है।
पिछले 10 वर्षों में दोगुनी खपत:
यदि पिछले एक दशक की बात करें तो शराब बिक्री में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। 2014 में जहां आबकारी संग्रह लगभग ₹2,000 करोड़ था, वहीं अब यह दोगुने से भी अधिक हो चुका है। सबसे अधिक खपत देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में दर्ज की गई है, जबकि पहाड़ी इलाकों में भी अब उपभोग का पैटर्न तेजी से बदल रहा है।
सामाजिक चिंता भी बढ़ी:
हालांकि, शराब की बढ़ती खपत को लेकर सामाजिक संगठनों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की सहज उपलब्धता ने पारिवारिक और सामाजिक ढांचे पर असर डाला है।
कुल मिलाकर, आंकड़े बताते हैं कि पिछले 25 वर्षों में शराब नीति ने न केवल राज्य की आर्थिक तस्वीर बदली है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा है। राजस्व के लिहाज से यह सरकार के लिए बड़ा स्रोत बन गया है, लेकिन चुनौती अब राजस्व और सामाजिक संतुलन के बीच संतुलन बनाने की है।
