Latest News अन्य उत्तराखंड देश

हम ताउम्र प्रेम की तलाश में रहते हैं, उसको दूसरों में ढूंढते हैं, पर वह तो हमारे अंदर कहीं छुपा होता है – डॉक्टर स्वाति

“सच्चा प्रेम” – 

देहरादून – जब छोटी थी, तब माँ के आँचल और पापा की गोद में छुपा था प्रेम। लुका-छिपी खेलने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती थी और प्रेम मुझे हमेशा ढूंढ लेता था। थोड़ी बड़ी हुई, तो हॉस्टल में रह रहे कुछ दोस्तों में मिल गया प्रेम, उस वक़्त मेरे लिए प्रेम का मतलब किसी अजनबी के अंदर घर का मिल जाना था। फिर थोड़ी और बड़ी हुई, तब मेरे लिए प्रेम हो गया किसी खास का ज़िन्दगी में होना, जो बाकी दोस्तों से अलग होl  लगा प्रेम तो बस यही है, बाकी सब जो भी इसके पहले जिया वो शायद मिथ्या था।पर कुछ सालों बाद जब दिल टूटा, तो लगा भक्क प्रेम जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। प्रेम खुद एक झूठ है। पर मुझे क्या पता था, प्रेम के साथ मैं लुका-छुपी खेलूँ या नहीं, वह मुझ तक अपना रास्ता बना लेगा। मुझे फिर प्रेम हुआ, मगर इस बार खुद से। ज़िन्दगी में पहली बार एहसास हुआ कि हम ताउम्र प्रेम की तलाश में रहते हैं, उसको दूसरों में ढूंढते हैं, पर वह तो हमारे अंदर कहीं छुपा होता है। इसलिए, शायद हमसे हर बार टकरा जाता है। अब मैं खुद से प्रेम कर रही थी और यह भावना ही एक दम अलग थी।

मुझे लगने लगा कि अब मुझे समझ आने लगा कि प्रेम क्या होता है, खुद के लिए जीना ही तो है प्रेम स्वयं से प्रेम का मतलब ईश्वर से प्रेम क्योंकि जो ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है उसे प्रेम करने लगता है उसे दुनिया में किसी चीज की और जरूरत नहीं रहती खो जाता है वह उसके प्रेम में क्योंकि ईश्वर हर इंसान के अंदर छुपा है और अगर हमने खुद को जान लिया तो हम अपने ईश्वर से इतना प्रेम करने लगते हैं कि हमें कोई भारी वस्तु या व्यक्ति आकर्षित नहीं करता l फिर मैंने घूमना शुरू किया और मुझे दरारों से निकलते फूलों, पहाड़ों में गूंज रही आवाज़ों, दूर बसे अनजान गाँवों की पगडंडियों, विशाल किलों में छुपी कहानियों, उगते सूरज और ढलती शामों से प्रेम होने लगा और ज़िन्दगी में पहली दफ़ा एहसास हुआ कि सिर्फ जीवित चीजों से नहीं, निर्जीव चीजों से भी प्रेम किया जा सकता है; भरपूर किया जा सकता है। पागल हुआ जा सकता है पहाड़ों के प्रेम में, बहती नदियों के वेग में, अनजान सड़कों की आस में। बावरी सी हो गई कान्हा के प्रेम में राधे के प्रेम में।आह…कितना सुंदर है प्रेम में होना। आने वाले सालों में ना जाने कितनी दफ़ा और होगा प्रेम मुझे, यह मैं नहीं जानती, पर मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि मुझे प्रेम को खोजने के लिए उससे लुका-छिपी खेलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि मैं जानती हूँ प्रेम मुझे ढूंढ ही लेगा। और जैसे ही मैं उसे समझने लगूँगी, आ जाएगा किसी और रूप में मेरे सामने और गढ़ देगा फिर से अपनी कोई नई परिभाषा..l

डॉक्टर स्वाति (कशिश)

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *